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माँ का आँचल

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माँ का आँचल  वैसे तो जिंदगी के  दो  ही  पहलु होते हैं ,सुख़ और दुःख ! परन्तु जीवन में कुछ छण ऐसे भी आते हैं ,जब दुःख अपनी सीमा लांघ कर असीम दर्द दे जाते है !उनदिनों मैं पटना में डॉ. अरुण कुमार झा के  मकान में रहता था। १ मई २००७ की सुबह उठे ही थे की एक करीबी रिस्तेदार के द्वारा यह मालूम हुआ  की मेरी माँ की तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब है !मेरी माँ करीब ५-६ महीनों से बीमार रह रही थी,जिसका उपचार पहिले तो पटना से ही फिर मुंगेर स्थित डॉ. मदन प्रसाद से कराया जा रहा था। फोन से समाचार लेने के बाद मैं व्याकुल हो गया और अगले ही सुबह मैं घर चला गया। मेरी माँ चारपाई पर लेटी दर्द से कराह रही थी। आस -पास दवाई के कई डब्बे और परिजन बैठे थे। मैंने माँ का चरणस्पर्श किया , माँ की आखों में आंसू छलक पड़े ! ...मेरी भी आँखें नम हो गयी। फिर मैं सांत्वना के दो शब्द कहकर हाथ-पैर धोये और पटना ले चलने का प्रोग्राम बनाया। ३ मई को करीब १ बजे रात में हमलोग पटना पहुंचे। ४ मई की सुबह हमलोग उसे शल्यचिकित्सक डॉ ब्रजभूषण पाण्डेय के यहाँ दिखाया। अल्ट्रासाउंड , एक्स -रे एवं  विभिन्य प्रकार के जाँच के बाद शाम को  डॉ ने बीमारी को

आत्मा का ईंधन

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आत्मा का ईंधन शरीर का ईंधन भोजन और श्वास है ,प्रतिपल शरीर को श्वास की जरूरत होती है।श्वास ना मिले तो शरीर का जीवन से संबंध टूट जाता है।श्वास सेतु है। उससे हमारा शरीर से अस्तित्व जुड़ा रहता है। श्वास दिखाई नहीं देती, सिर्फ उसके परिणाम ही दिखाई देता हैं कि मनुष्य जीवित है।जब श्वास चली जाती है तभी परिणाम ही दिखाई देता हैं ।श्वास का जाना तो दिखाई नहीं देता है।यह दिखाई देता है कि मनुष्य की मृत्यु हो गयी है। मस्तिष्क का ईंधन अध्ययन ,चिंतन -मनन और अध्यापन है ,अगर मनुष्य अध्यन नहीं करता, विचारशील नहीं होता है तो उसका सम्बन्ध मस्तिस्क से टूट जाता है ,दिखाई नहीं देता पर मनुष्य की मानसिक मौत हो जाती है।  प्रेम आत्मा का ईंधन है ,  प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की एक असीम ऊर्जा है । प्रेम परमात्मा तक पहुंचने का आसान मार्ग है। प्रेम करने जैसी कोई चीज नहीं है ,प्रेम बना जा सकता है। जब आप प्रेम बन जाते हो तो इस प्रेम रूपी तरंग से जो भी आपके नजदीक आता है प्रेममय हो जाता है। एक ऐसी अवस्था जिसमें आप अपने आप में , दूसरे किसी मनुष्य में या अन्य जीव को या फिर पेड़ -पौधो में भी उस आत्मा रूपी ऊर्जा

साफ नीयत

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साफ नीयत मेरे गावं में रहने वाले एक युवक "आबिद " की ख्याति दूर-दूर तक थी। पहले तो  मैं ये बता देना चाहता हूँ कि मेरा गावँ "लछुआड़ " जो बिहार प्रान्त में स्थित है ,२१वी शदी में भी हिन्दू -मुस्लिम और जैन आपसी भाई चारे का विचित्र नमूना है। आबिद जो एक मुस्लिम नौजवान है , पेशे से हकीम ,आयुर्वद ,जड़ी बूटी का जानकार है। कुरान की विद्यिवत ज्ञान के साथ -साथ ,सभी धर्मों को सामान रूप से सम्मान और भाईचारे की भावना ने उसे न केवल इस्लाम बल्कि अन्य  लोगों के बीच भी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया था।  गाँव में स्थित मस्जिद के मौलवी का आकस्मिक निधन होने की वजह से,  उन्हें वहाँ का नया मौलवी नियुक्त किया गया था। प्रेम, मुहब्बत और ईमान की तालिम जब वो कुरान सरीफ के बिभिन्न आयतों से देते और साथ में ही कुछ एक उदाहण गीता के छंद से भी देते तो मानो धार्मिक मतभेद से ऊपर उठकर वातावरण मानव सेवा के लिए तत्पर हो गया हो।  एक बार वे बाजार  जाने के लिए टमटम (घोड़े की गाड़ी ) में चढ़े,  उन्होंने किराए के रुपये दिए और सीट पर बैठ गए। टमटम चालक असलम  ने जब किराया काटकर उन्हें रुपये वापस दिए तो मौलवी जी ने प

प्रेम :-एक वैचारिक लेख

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प्रेम :-एक वैचारिक लेख आज के युवा वर्ग में एक गलत धारणा बन गई है ,जो साहित्य के सबसे  पवित्र शब्द "प्रेम " को धूमिल कर उसकी सही परिभाषा को बदल दी है। जी हाँ ,सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं ,बल्कि ये गलत धारणा हमारे समाज के किशोर - किशोरियों से लेकर प्रौढ़ावस्था में भी एक लाइलाज बीमारी के रूप में बहुत तेजी से फ़ैल रही है।  गाँव की धूलभरी गलियों से लेकर शहर के कस्वों तक ,माध्यमिक विद्यालयों से लेकर विश्विद्यालयों तक ,ईंट की छोटी -सी भट्टी से लेकर बड़े -बड़े कलकारखानों में काम करने वाले किशोर ,युवा तथा प्रौढ़ अपने विपरीत लिंग से प्रेम करने लगे हैं। पाठकगण शायद आप खुश हो रहे होगें। आप सोच रहे होगें,"वाह,अब तो समाज में ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध का तो नामोनिशान नहीं रहा होगा। " लेकिन ऐसी बात नहीं है,जिस अनुपात में समाज में प्रेम करने वाले बढ़े हैं ,उसी अनुपात में  ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध ,हत्या ,धोखा ,नफरत ,बलात्कार ,अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं. जरा सोचिये ,गंभीरतापूर्वक सोचिये क्या है ये सब !कोई लड़की कहती है ,"प्रेम करना पुण्य है ,नफरत करना पाप ! वही लड़की अपनी प्रेमी से कहती है ,"तुम

Who I am?

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 It is very difficult to define "Who I am?" शायद अपने आप को समझ लेना ही दुनिया का सभी समस्याओं का हल है।  अभी तक  जितना मैं अपने आप को समझ पाया हूँ ,वो चंद शब्दों के जरिये मैं आपलोगों से साझा करना चाहता हूँ ,और ये अनुभूति मुझे एक लंबे समय  से विचारशील रहने से  हुआ है।  "मैं" शब्द का उच्चारण करते ही मुझे ऐसा बोध होता है कि मेरा अस्तित्व इस शरीर से परे है , मेरी दिनचर्या ,मेरा नाम,इच्छाएँ ,सफलताएं -असफतायें ,भावना ,जरुरत ,आय-व्यय , परिवार ,समाज ,पेशा से इसपर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता।  यह शरीर जिसमें मैं रहता हूँ ,इसको स्वच्छ एवं सुन्दर रखना मेरी जिम्मेदारी है ,मेरे मन की इच्छाएँ हैं ,जिसकी पूर्ति  करते रहना भी समयानुसार आवश्यक है ,इसीकारण मैं किसी न किसी प्रॉफ़ेसन से जुड़कर Source of income को Create करते है ताकि अपनी छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पूरा की जा सके। मेरे मन और शरीर को इमोशन ,सेफ्टी की आवश्कता पड़ती है ,इसलिए मैं परिवार बनाना तथा उससे जुड़कर रहना पसंद करता हूँ।  सफलता मिलने पर मन प्रसन्न होता है ,असफलता मिलने पर दुःखी होता है ,लेकिन इसका कोई असर मेरे ऊपर नहीं होता।

खरे सोने की कहानी!

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 खरे सोने की कहानी   जी हाँ ! खरे सोने कि कहानी !अजीबोग़रीब,आश्चर्यपूर्ण परन्तु काल्पनिक! एक सोना का टुकड़ा ,मटमैला ,कई अशुद्धियो से भरा हुआ, जिसे एक साधारण आदमी ने धरती माँ की गोद में छिपा बैठा देख लिया। उन्होंने उसे बहुत ही प्यार से उठाया, पानी से धोया फिर विभिन्न तरीकों से उसे पहचानने की कोशिश की ,पूर्ण विस्वश्त होकर उसे गावं के किसी जोहरी के यहाँ उसे शुद्ध करने को दिया। भला गावं का जोहरी आधुनिक तकनीकों के अभाव में जो कुछ शुद्ध हो पाया वो हुआ ,पुनः वह सोने को लौटा दिया।  साधारण आदमी ने उसे फिर एक छोटे से शहर के जोहरी के हाथों दे दिया,उसने भी उसे हद तक शुद्ध किया। पुनः लौटा दिया। अब वो साधारण आदमी सोने में और निखार लाने के लिए एक बड़े शहर में भेजा ,पर वहाँ जाकर न वो सोना शुद्ध हो पाया न ही अशुध्दता की कोई दाग लगी। साधारण आदमी को बड़ा असंतोष हुआ और उसने सोने कुछ दिन तक अपने पास रखा। सोना उस आदमी के पास पड़ा रहा ,जब जब जरुरत पड़ी ,उसने सोने से काम लिया। कुछ दिन बाद वो आदमी को एक बड़े शहर में एक अच्छे जोहरी का पता चला ,उसने जोहरी को वो सोना शुद्ध करने के लिए दे दिया। जोहरी जिसे वो सोना मिला उस

प्याली की आत्मकथा!

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                                                     प्याली की आत्मकथा    जी हाँ !प्याली की आत्मकथा ! आपने किसी लेखक ,वैज्ञानिक ,फ़िल्मकार की आत्मकथा  सुनी होगी ,परन्तु प्याली की आत्मकथा ,बड़ा अजीब सा शीर्षक है,पर मैं क्या करू आज मैं विवश हो गया हूँ लिखने को। यह कोई मधुशाला के प्याली की कहानी नहीं ,बल्कि एक गरीब कुम्हार के हाथों बने मिट्टी की प्याली की कहानी है। गीली मिट्टी चाक पर घुमघुमा कर बड़े ही प्यार से कुम्हार ने एक प्याली को जन्म दिया।  जेठ की कड़ी दुपहरी में उसे सुखाया,फिर जीवन में आने वाले कठिनाई से जूझने के लिए आग की लहलहाती भठी में डाल दिया। आग की झुलस में परिपक्वता को पाकर सुन्दर सी प्याली अपने रूप यौवन पर गर्व से मुस्काई।  फिर शायद कुम्हार को यकीं नहीं आयी, उसने उसकी मजबूती की परीक्षा अपने नाखुनो से ठोक कर लिया। पूर्ण विश्वस्त हो जाने के बाद कुम्हार उसे अपने थैली में रखकर बाजार चला।  प्याली पूछी ,'हे पिता तुल्य देव !मुझे आप  कहाँ ले जा रहे है ?" घबराओ नहीं अब तुम्हें शहरों में रहना है ,कुम्हार की ये बात सुनकर प्याली खुश हो गयी।  कुम्हार एक चाय दुकान की छोटी सी टेबल पर