प्रेम :-एक वैचारिक लेख


प्रेम :-एक वैचारिक लेख

आज के युवा वर्ग में एक गलत धारणा बन गई है ,जो साहित्य के सबसे  पवित्र शब्द "प्रेम "

को धूमिल कर उसकी सही परिभाषा को बदल दी है। जी हाँ ,सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं ,बल्कि ये गलत धारणा हमारे समाज के किशोर - किशोरियों से लेकर प्रौढ़ावस्था में भी एक लाइलाज बीमारी के रूप में बहुत तेजी से फ़ैल रही है। 

गाँव की धूलभरी गलियों से लेकर शहर के कस्वों तक ,माध्यमिक विद्यालयों से लेकर विश्विद्यालयों तक ,ईंट की छोटी -सी भट्टी से लेकर बड़े -बड़े कलकारखानों में काम करने वाले किशोर ,युवा तथा प्रौढ़ अपने विपरीत लिंग से प्रेम करने लगे हैं। पाठकगण शायद आप खुश हो रहे होगें। आप सोच रहे होगें,"वाह,अब तो समाज में ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध का तो नामोनिशान नहीं रहा होगा। " लेकिन ऐसी बात नहीं है,जिस अनुपात में समाज में प्रेम करने वाले बढ़े हैं ,उसी अनुपात में  ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध ,हत्या ,धोखा ,नफरत ,बलात्कार ,अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं.

जरा सोचिये ,गंभीरतापूर्वक सोचिये क्या है ये सब !कोई लड़की कहती है ,"प्रेम करना पुण्य है ,नफरत करना पाप !

वही लड़की अपनी प्रेमी से कहती है ,"तुम सिर्फ मुझसे प्रेम करो और किसी से नहीं। जरा ध्यान दीजिये प्रेम करना यदि पुण्य है और नफरत करना पाप ! फिर आप एक  प्यार करते हैं तो  आपको १% पुण्य होता है शेष ९९%

पाप। तो  इसप्रकार आपकी  प्रेयसी १% पुण्य ९९% पाप करने  के लिए आपको आपको मजबूर करती है और आप ऐसा ही   करने लगते हैं। 

कोई लड़का वासनापूर्ति हेतु विपरीतयोनाकर्षित होकर ,"आई लव यू " कहता है तो कोई लड़की अकेली नहीं रह सकती ,घबराती है ,डरती है जीवन में आनेवाले कठिनायों से तो किसी को "आई लव यू " कहती है। अर्थात यह "आई लव यू " वाक्य वर्तमान समय में किसी न किसी रूप में स्वार्थ से परिपूर्ण है। 

कोई लड़की किसी से कहती है ,मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ,तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करो। अरे तब ये प्यार ,प्यार रहा कहाँ ? ये तो व्यापार हो गया। नाना प्रकार के वादे -कश्मे प्रेम बाजार मे प्रचलित है ,जिसमें साथ जियेगें -साथ मरेगें , बहुत चर्चित और लोकप्रिय है। 

अरे एक अकेला ,अब दो अकेले हो गए। साथ जबतक रहेंगे समस्यायों से घिरे रहेगें ,साथ मरने का तो सबाल ही नहीं उठता क्यूंकि साथ जन्मे नहीं हैं। 

इसी समाज में मैंने ये भी सुना है ,मैं सुन्दर नहीं हु इसलिए मुझे कोई प्यार नहीं करता। कभी अपने आप से प्यार किया नहीं तो लोग तुम्हे क्या प्यार करेगें।क्या आपने सुना है की गाय ,घोड़ा ,बकरी या भैंस कभी रो रहा है की मैं सूंदर नहीं हूँ। जी नहीं ,क्योकि सभी ईश्वर के द्वारा बनाया गया है ,इसलिए सब सुन्दर  है। सिर्फ मानव जाति ही अपनी तुलना दूसरों से करके अंदर ही अंदर कुढ़ता रहता है। 

प्यार किया नहीं जाता , और न ही ये हो जाता है ,वास्तव में प्यार शब्द "Verb" है ही नहीं ,Noun अर्थात संज्ञा है।

प्यार बना जा सकता है , जब आप निरंतर ध्यान से अपने अंदर के मोह ,स्वार्थ ,ईर्ष्या ,घिर्णा ,नफरत वासना लोभ आदि ऊपर निकल जाते है ,तब आप प्यार बन जाते है ,तब जो आपके अंदर से भावनाओ का प्रवाह होगा ,वो प्रवाह जिसके पास भी जायेगा ,वो प्यार से सराबोर हो जायेगा ,आनंदित हो जायेगा ,प्रफुलित हो जायेगा ,चाहे वो मनुष्य हो ,जानवर हो या पेड़ -पौधे ,पूरा संसार प्रेममय हो जायेगा। प्रेम एक शाश्वत सत्य शब्द है जिसका एक ही मंजिल है आत्मा का परमात्मा से मिलान। 

"भावनाओं के सतत प्रवाह  को प्रेम कहते हैं। 

"Continuous flow of emotion is called Love."

-पवन कुमार (मानव संसाधन व्यवस्थापक )















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