आत्मा का ईंधन

आत्मा का ईंधन


शरीर का ईंधन भोजन और श्वास है ,प्रतिपल शरीर को श्वास की जरूरत होती है।श्वास ना मिले तो शरीर का जीवन से संबंध टूट जाता है।श्वास सेतु है। उससे हमारा शरीर से अस्तित्व जुड़ा रहता है।

श्वास दिखाई नहीं देती, सिर्फ उसके परिणाम ही दिखाई देता हैं कि मनुष्य जीवित है।जब श्वास चली जाती है तभी परिणाम ही दिखाई देता हैं ।श्वास का जाना तो दिखाई नहीं देता है।यह दिखाई देता है कि मनुष्य की मृत्यु हो गयी है।

मस्तिष्क का ईंधन अध्ययन ,चिंतन -मनन और अध्यापन है ,अगर मनुष्य अध्यन नहीं करता, विचारशील नहीं होता है तो उसका सम्बन्ध मस्तिस्क से टूट जाता है ,दिखाई नहीं देता पर मनुष्य की मानसिक मौत हो जाती है। 

प्रेम आत्मा का ईंधन है ,  प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की एक असीम ऊर्जा है । प्रेम परमात्मा तक पहुंचने का आसान मार्ग है।

प्रेम करने जैसी कोई चीज नहीं है ,प्रेम बना जा सकता है। जब आप प्रेम बन जाते हो तो इस प्रेम रूपी तरंग से जो भी आपके नजदीक आता है प्रेममय हो जाता है। एक ऐसी अवस्था जिसमें आप अपने आप में , दूसरे किसी मनुष्य में या अन्य जीव को या फिर पेड़ -पौधो में भी उस आत्मा रूपी ऊर्जा का अनुभव करने लगते हैं , और आनंद की स्थिति को स्पर्श करने लगते है। सुख -दुःख का आभाष बहुत पीछे रह जाता है। 

बिना प्रेम के तो मनुष्य बाहर बाहर ही भटकता रहता है।वह अपने घर को उपलब्ध नहीं हो पाता।अतंस के भीतर जाने का एक ही द्वार है और वह प्रेम है।
प्रेम और भी गहरी श्वास है। और भी अदृश्य अहसास है।

प्रेम आत्मा और परमात्मा के बीच का जोड़ है।एक सेतु है।जैसे शरीर और अस्तित्व को श्वास जोड़ कर रखती है।वैसे ही प्रेम की तरंगें जब बहती हैं तभी मनुष्य परमात्मा से जुड़ता है।

इसलिए प्रेम से महत्वपूर्ण और कोई दूसरा शब्द है ही नहीं। प्रेम से गहरी दूसरी कोई अनुभूति नहीं है।

-पवन कुमार 

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