प्याली की आत्मकथा!

                                          प्याली की आत्मकथा  

जी हाँ !प्याली की आत्मकथा !

आपने किसी लेखक ,वैज्ञानिक ,फ़िल्मकार की आत्मकथा  सुनी होगी ,परन्तु प्याली की आत्मकथा ,बड़ा अजीब सा शीर्षक है,पर मैं क्या करू आज मैं विवश हो गया हूँ लिखने को। यह कोई मधुशाला के प्याली की कहानी नहीं ,बल्कि एक गरीब कुम्हार के हाथों बने मिट्टी की प्याली की कहानी है। गीली मिट्टी चाक पर घुमघुमा कर बड़े ही प्यार से कुम्हार ने एक प्याली को जन्म दिया। 

जेठ की कड़ी दुपहरी में उसे सुखाया,फिर जीवन में आने वाले कठिनाई से जूझने के लिए आग की लहलहाती भठी में डाल दिया। आग की झुलस में परिपक्वता को पाकर सुन्दर सी प्याली अपने रूप यौवन पर गर्व से मुस्काई।

 फिर शायद कुम्हार को यकीं नहीं आयी, उसने उसकी मजबूती की परीक्षा अपने नाखुनो से ठोक कर लिया। पूर्ण विश्वस्त हो जाने के बाद कुम्हार उसे अपने थैली में रखकर बाजार चला। 

प्याली पूछी ,'हे पिता तुल्य देव !मुझे आप  कहाँ ले जा रहे है ?" घबराओ नहीं अब तुम्हें शहरों में रहना है ,कुम्हार की ये बात सुनकर प्याली खुश हो गयी। 

कुम्हार एक चाय दुकान की छोटी सी टेबल पर रखकर जाने लगा,प्याली चिल्लाती रही ,चीखती रही पर वो कुछ नहीं सुना। अपनों के ही हाथों ठगी प्याली चाय दुकानदार से ही दोस्ती कर ली। दुकानदार ने उसे ठण्डे पानी से नहलाया। ख़ुशी से झूम उठी वह पूरा गुलाबी सी हो गयी। पर यह क्या वह तो और बेदर्द निकला ,अंगीठी पर रखी गर्म चाय सीधा उसमें डाल दिया। 


सुन्न सी रह गयी थी वह ,कोई सहारा नहीं था। वह बेबस तड़पती रही। तभी किसी का कोमल स्पर्श उसे राहत दिया। उसने अपने होठो से उसे ठंढी हवा का एहसास दिलाया। थोड़ी राहत मिली। फिर उसने अपने ठण्डे होठों से उसके गर्म चाय पिने लगा। धीरे धीरे गर्माहट दूर होती गयी ,वह ठंढी होती गयी। पर चाय ख़त्म होते ही उसने उसे यूँ जमीन पर पटका जैसे कोई घिर्णित वस्तु उसके पवित्र हाथ को अशुद्ध कर रहा हो। 

जमीन पर गिरकर नीरस ,निष्प्राण प्याली अंतिम सांस ली और प्याली की जिंदगी की करुण ब्यथा समाप्त हो गयी। 

"प्याली जीवन हाय ,तेरी यही कहानी। 

आँचल में है चाय ,आखों में है पानी।

-पवन कुमार 

(मानव संसाधन व्यवस्थ्पाक )



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