एक कप चाय ! Ek cup chya.

 

एक कप चाय 

 

चाय ! दो अक्षर का ये शब्द सुनते ही मन में उत्तेजना भर आती है ,सब कुछ नवीन जैसा लगने लगता है !एक गजब उमंग से पूरा शरीर भर जाता है। 

चाय एक उत्तेजक पदार्थ है !यह भारत , श्रीलंका ,ब्राजील ,चीन में मुख्य रूप से उपजाई जाती है ,यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जो विश्व के सभी देशों में एक पेय पदार्थ के रूप में ग्रहण किया जाता है। 

भारत दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश हैं, चाय का जन्म चीन में हुआ और आज तक चीन में सर्वाधिक मात्रा में चाय का उत्पादन होता हैं वहीँ निर्यात के मामले में श्रीलंका पहले स्थान पर हैं. जिसका लगभग सम्पूर्ण विदेशी व्यापार चाय पर निर्भर करता हैं. भारत में चाय के सम्बन्ध में एक हैरान करने वाला तथ्य यह है कि दौ सो वर्ष पूर्व यहाँ कोई व्यक्ति चाय से परिचित नहीं था मगर एक योजना के तहत सड़कों पर चाय के ड्रम रखे गये आने जाने वाले लोगों को मुफ्त में चाय पिलाई गई और इसका नतीजा यह हुआ कि आज एक अरब भारतीयों के दिन की शुरुआत चाय की प्याली से ही होती हैं.

चाय के आविष्कार और इसकी पत्तियों की पहचान से जुड़ी रोचक कहानी चीन के एक शासक शेन की हैं. कहते है कि वे हमेशा उबला हुआ पानी ही पीया करते थे. उनका निजी रसोइया ली उनके लिए पानी तैयार करता था. एक दिन अनायास ही जब वह पानी को उबाल रहा था तो पास ही उगी झाड़ी की कुछ पत्तियां उसमें आ गिरी, और उबलते जल में वे भी उबल गई और पानी का रंग बदल गया.

जब शेन ने वह पानी पिया तो तुरंत ली को आवाज दी गई, वह अपनी गलती से परिचित था अतः डरते डरते शेन के पास गया तो उसे दंड की बजाय पुरूस्कार दिया गया. शेन को उस पत्तियों से युक्त जल बेहद मनभावन लगा और उसी दिन से वे उस पेड़ की पत्तियों वाले उबले जल को ही पीने लगे. वे पत्तियां चाय की थी और इस तरह शेन चाय पीने वाले पहले चीनी शासक थे. बाद में इसमें शक्कर और दूध मिलाकर पीया जाने लगा. आज हम काली, अदरक, तुलसी, ग्रीन टी के रूप में भी चाय का सेवन करते हैं.



चाय पिने की शुरुआत के पीछे एक दिलचस्प कहानी और है ,"एक बार कुछ गड़ेरियों अपने भेड़ बकरियों के साथ जंगल गए। भेड़ बकरियों इधर उधर चारा चर रही थी। तभी वे सब जंगल के कुछ हरे भरे पतियों को खाया और एक गजब स्फूर्ति से इधर उधर घूमने लगे। गड़ेरिया आश्चर्य पूर्वक देखने लगे। उन्होंने सोचा की हमलोग भी इस पदार्थ का सेवन करें तो हमें भी स्फूर्ति महसूस होगी और उन्होंने इस पौधे के कुछ पतियों को चबाया और उत्तेजना महसूस करने लगे। उन्होंने इस पतियों को आस पास के लोगो को भी दिया। सभी लोग एक गजब स्फूर्ति महसूस करने लगी। धीरे धीरे इन पतियों को दूध ,पानी तथा चीनी के साथ पेय पदार्थ के  रूप में  ग्रहण किया जाने लगा। और अब तो यह एक औषधि के रूप में घर घर में प्रयोग किये जाने लगे हैं। यह नींद को दूर भागता है ,शरीर में स्फूर्ति लाता है तथा थकान दूर करता है !

गाँव घर ,समाज ,देश में  तो अब चाय एक परम्परा सी बन गयी है। वैसे तो ये ठंढे मुल्को के लोगों के लिए के लिए आवश्यक है ,परन्तु जिस में ये उपजाए जाते हो भला उस देश के लोग इसे कैसे छोड़ दें। चाय तो अब एक शौक की वस्तु हो गयी है। चाहे भारत के प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर गए हो ,तो सन्देश के रूप में चाय का एक सूंदर पैकेट देना कैसे भूल जाएंगे। 

हमारे देश में चाय के आशिकों की तो कमी ही नहीं है ,देश के उत्पादन का अधिकांश भाग लोग पेय पदार्थ के रूप में अपने देश में ही ले लेते है, चाहे वह क्वीलिटी नंबर ३ का ही क्यू न हो। फलस्वरूप दुनिया में चाय उत्पादन में ऊपरी स्तर में आने वाला भारत निर्यात में तीसरे या चौथे स्थान पर होता है। 

शहर में रहने वाले बड़े लोगों की तो बात ही कुछ और है , लोग बेड टी लेते है। सुबह की सुनहली किरण की स्वागत और शाम की लालिमा भरे सूंदर अंशुमाली की विदाई चाय से ही होती है। चाहे यह भूख मिटाने का एक एक तरीका ही क्यों न हो, शहर वालों से आप दोपहर १२ बजे पूछिए की क्या आपने नास्ता किया है? तो बतायेगें " चाय बिस्किट ले लिया है ", और गावं वालो की तो बात ही निराली है ,गाँव में तो चाय ,चाय नहीं चाह बन गयी है। गाँव में जो लोग माध्यम वर्ग के लोग है उनके लिए चाय एक प्रतिष्ठा की वस्तु बन गयी है। शाम -सुबह की तो स्वागत ही चाय से होती है ,अगर इस बीच कोई अतिथि आ जाये तो क्या कहना। अब शरवत का तो जमाना रहा नहीं। चाहे चिलचिलाती धुप ही क्यों न हो उनकी स्वागत चाय से ही की जाती है ,चाहे वो चाय पीते -पीते पसीने से भींग न जाये। और सही बात तो यह है की अगर उन्ही से पूछा जाय कि आप क्या लेना पसंद करेंगे ,चाय या शर्बत ! तो वो कहेगें चाय चल जाती तो कुछ अलग बात होती। और तो और घर में काम वाले नौकर नौकरानियों को भी सुबह शाम चाय तो चाहिए ही !पार्टी -फंक्शन या बारात तो चाय एक अति आवश्यक पेय है। 

सबमिलाकर चाय  अनमोल बस्तु बन गयी है। निम्नवर्गो को ही देख लीजिये ,जो मजदुर दिनभर मेहनत करके थोड़े से पैसे कमाते हैं , उनकी पत्नी शाम को दुकानदार के सौदे के लिस्ट में लिखवाएगी ,आधा किलो चावल ,एक पाँव दाल ,५ रुपये की चीनी और ५ रुपए की चाय। यहाँ चाय शब्द समय बोलते हुए अनायाश उश्के पर एक मुस्कुराहट भी आ जाती है। बच्चे को देख लीजिये वो चाय शुद्ध से बोल पाए या नहीं चाय पियेंगे जरूर। चाहे डॉक्टर लाख मना करे,माता-पिता लाख कोशिश कर ले चाय पियेंगे जरूर। मैंने देखा है ,बच्चे गाते है :-

"हमरा चाय चाही ,हमरा चाय चाही ,

एक नहीं ,दो नहीं पुरे गिलाश चाही ,

हमरा चाय चाही। "

औरो को तो छोड़िये ,मेरा ही उदाहरण ले लीजिये ,मेरा घर सम्पन तो नहीं ख़ुशी पूर्वक निर्वाह हो जाता है। मेरे घर सबमिलकर १२ सदस्य है। चाय पीना मेरे घर की एक आवश्यक कार्य प्रणाली है। दिन में दो बार तो आवश्यक है ,परन्तु कोई अतिथि आ जाय तो चाय २-३ बार और चल जाती है। मैं बचपन से चाय का बड़ा शौकीन हूँ। मुझे वो सारा दृस्य आज भी याद है ,जब हम खेतो में काम करने जाते थे ,एक देशी जुगाढ़ दुवारा गरम चाय वहां पहुचायी जाती थी। जाड़े की शाम चाय की छलकती हुई प्याली किसकी मन नहीं मोह लेगी ?

जब सुबह स्नान के बाद चाय की मदमाती उन्माती बर्तन पर मेरी नजर पडती तो मेरा अंग अंग पुलकित हो उठता और में अनायास ही मुस्कुराकर कह देता !

"एक कप टी 

तुमने दी ,

हमने पी ,

ही ही ही !

जब हम सभी एक टोली में बैठकर छत पर शांत वातबरण में निशाकर के मंद प्रकाश में चाय की चुस्की लेते तो मेरे लिए एक गजब आनंद का छण होता ! 

-पवन कुमार 

(मानव संसाधन व्यवस्थापक )








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