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Showing posts from August, 2021

आत्मा का ईंधन

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आत्मा का ईंधन शरीर का ईंधन भोजन और श्वास है ,प्रतिपल शरीर को श्वास की जरूरत होती है।श्वास ना मिले तो शरीर का जीवन से संबंध टूट जाता है।श्वास सेतु है। उससे हमारा शरीर से अस्तित्व जुड़ा रहता है। श्वास दिखाई नहीं देती, सिर्फ उसके परिणाम ही दिखाई देता हैं कि मनुष्य जीवित है।जब श्वास चली जाती है तभी परिणाम ही दिखाई देता हैं ।श्वास का जाना तो दिखाई नहीं देता है।यह दिखाई देता है कि मनुष्य की मृत्यु हो गयी है। मस्तिष्क का ईंधन अध्ययन ,चिंतन -मनन और अध्यापन है ,अगर मनुष्य अध्यन नहीं करता, विचारशील नहीं होता है तो उसका सम्बन्ध मस्तिस्क से टूट जाता है ,दिखाई नहीं देता पर मनुष्य की मानसिक मौत हो जाती है।  प्रेम आत्मा का ईंधन है ,  प्रेम आत्मा में छिपी परमात्मा की एक असीम ऊर्जा है । प्रेम परमात्मा तक पहुंचने का आसान मार्ग है। प्रेम करने जैसी कोई चीज नहीं है ,प्रेम बना जा सकता है। जब आप प्रेम बन जाते हो तो इस प्रेम रूपी तरंग से जो भी आपके नजदीक आता है प्रेममय हो जाता है। एक ऐसी अवस्था जिसमें आप अपने आप में , दूसरे किसी मनुष्य में या अन्य जीव को या फिर पेड़ -पौधो में भी उस आत्मा रूपी ऊर्जा

साफ नीयत

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साफ नीयत मेरे गावं में रहने वाले एक युवक "आबिद " की ख्याति दूर-दूर तक थी। पहले तो  मैं ये बता देना चाहता हूँ कि मेरा गावँ "लछुआड़ " जो बिहार प्रान्त में स्थित है ,२१वी शदी में भी हिन्दू -मुस्लिम और जैन आपसी भाई चारे का विचित्र नमूना है। आबिद जो एक मुस्लिम नौजवान है , पेशे से हकीम ,आयुर्वद ,जड़ी बूटी का जानकार है। कुरान की विद्यिवत ज्ञान के साथ -साथ ,सभी धर्मों को सामान रूप से सम्मान और भाईचारे की भावना ने उसे न केवल इस्लाम बल्कि अन्य  लोगों के बीच भी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया था।  गाँव में स्थित मस्जिद के मौलवी का आकस्मिक निधन होने की वजह से,  उन्हें वहाँ का नया मौलवी नियुक्त किया गया था। प्रेम, मुहब्बत और ईमान की तालिम जब वो कुरान सरीफ के बिभिन्न आयतों से देते और साथ में ही कुछ एक उदाहण गीता के छंद से भी देते तो मानो धार्मिक मतभेद से ऊपर उठकर वातावरण मानव सेवा के लिए तत्पर हो गया हो।  एक बार वे बाजार  जाने के लिए टमटम (घोड़े की गाड़ी ) में चढ़े,  उन्होंने किराए के रुपये दिए और सीट पर बैठ गए। टमटम चालक असलम  ने जब किराया काटकर उन्हें रुपये वापस दिए तो मौलवी जी ने प

प्रेम :-एक वैचारिक लेख

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प्रेम :-एक वैचारिक लेख आज के युवा वर्ग में एक गलत धारणा बन गई है ,जो साहित्य के सबसे  पवित्र शब्द "प्रेम " को धूमिल कर उसकी सही परिभाषा को बदल दी है। जी हाँ ,सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं ,बल्कि ये गलत धारणा हमारे समाज के किशोर - किशोरियों से लेकर प्रौढ़ावस्था में भी एक लाइलाज बीमारी के रूप में बहुत तेजी से फ़ैल रही है।  गाँव की धूलभरी गलियों से लेकर शहर के कस्वों तक ,माध्यमिक विद्यालयों से लेकर विश्विद्यालयों तक ,ईंट की छोटी -सी भट्टी से लेकर बड़े -बड़े कलकारखानों में काम करने वाले किशोर ,युवा तथा प्रौढ़ अपने विपरीत लिंग से प्रेम करने लगे हैं। पाठकगण शायद आप खुश हो रहे होगें। आप सोच रहे होगें,"वाह,अब तो समाज में ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध का तो नामोनिशान नहीं रहा होगा। " लेकिन ऐसी बात नहीं है,जिस अनुपात में समाज में प्रेम करने वाले बढ़े हैं ,उसी अनुपात में  ईर्ष्या ,घृणा ,क्रोध ,हत्या ,धोखा ,नफरत ,बलात्कार ,अपराध भी बढ़ते जा रहे हैं. जरा सोचिये ,गंभीरतापूर्वक सोचिये क्या है ये सब !कोई लड़की कहती है ,"प्रेम करना पुण्य है ,नफरत करना पाप ! वही लड़की अपनी प्रेमी से कहती है ,"तुम